मैं एक मज़दूर हूँ । जी हाँ , सिर्फ एक मज़दूर ।।
बात बचपन की है, किस्से भी बचपन के,
और मजदूरी की हक़ीक़त की शुरुआत भी बचपन हुई है ।
बनना चाहते थे हम भी कभी देश क गौरव ।
सोचा था करेंगे ऐसा काम जिससे हो माँ बाप का नाम।
लेकिन , थमा हाथ में औजार , उम्र ने कर दिया बचपन में ही जवान।।
क्योंकि, मैं एक मज़दूर हूँ । जी हाँ, सिर्फ एक मज़दूर ।।
हमारे जीवन का ये किस्सा आसान नहीं ! और मुश्किल भी नहीं !
शायद अजीब सा है , सुनिए !
खाता है वो सिर्फ रोटी, सब्जी चावल और दाल।
इतना सा कमाने में फिर क्यों हो जाता है बुरा हाल।
और एक दिन भी न कर सके आराम से आराम।
मजदूरी करते हुए भी करना पड़ता है सलाम।
क्योंकि, मैं एक मज़दूर हूँ । जी हाँ, सिर्फ एक मज़दूर ।।
न पूछे जात धर्म ना पूछे कौन समाज का।
पेट जब खाली हो, पता पूछे बस अनाज का।
धिक्कारे खुद को, खुद के कदम से खुद की जमीनों पर,
धूप से हों जख्म की कतारे, चलता जाये बिन इलाज का।।
क्योंकि, मैं एक मज़दूर हूँ । जी हाँ, सिर्फ एक मज़दूर ।।
भटकता हूँ घर घर, बनाने को अपना मकान।
लगता चक्कर दर बदर, पाने को इंसानों वाला नाम सम्मान।
संभालें छत, टूटे फर्श , बिखरे कमरे और रोते बच्चे ।
मेहनत करने के बाद भी रह जाते हैं मकान कच्चे।
क्योंकि, मैं एक मज़दूर हूँ । जी हाँ, सिर्फ एक मज़दूर ।।
सवाल उठाऊं तो दबा दिया जाए, मांगे हक़ तो मार दिया जाए।
मजदुर की मजदूरी को समझते हैं मजबूरी,
अच्छे काम के लिए भी धन्यवाद नहीं कहा जाए।
दिखा दो कोई सही रास्ता उनको
कोई रास्ता तो कोई मंजिल बन जाए
ऐसा हुनर है इस मजदुर में, कोई पहचान ले,
तो सोने की चिड़िया वाला फिर से हिंदुस्तान बन जाए।
क्योंकि…
मैं एक मज़दूर हूँ । मैं मजबूर नहीं हूँ।